Wednesday 4 May 2011

ये अश्क ही है बस अब तेरी याद की निशानी

मेरी आँखों में सजे अश्क, जो है मेरी कहानी 
ये अश्क ही है बस अब तेरी याद की निशानी 
ये अश्क जो थे मोती ,अब बन गए है पानी 
तम्मना है अब भी ,गुज़ारू तेरे ही साथ जिंदगानी 
ये कुछ और नहीं बस वक़्त की है रवानी
तुझे मालुम है की जिंदगी है एक खामोश सफ़र 
और इसमें तुझे मेरे साथ चलना है मेरे हमसफ़र 
हम होंगे साथ तो नहीं डगमगायेगी हमारी डगर 
लेकिन तू ही मुझको चली गयी छोड़कर 
साडी कसमे, सारे वादे तोड़कर 
मुझे तेरा इंतजार अब भी है जानी ........
मुझ पर भी करदे ये छोटी सी महेरबानी 
मेरी आँखों में सजे अश्क, जो है मेरी कहानी 
ये अश्क ही है बस अब तेरी याद की निशानी

Tuesday 3 May 2011

क्यों अपने पी के को रुलाया आपने.........

जिंदगी ऐ संघर्ष से जब मैं लगा था  कापने 
तब उस दौर ऐ जिंदगी में साथ थामा था मेरा आपने 
वो दिन जब मैं अपने आप पर रोता था 
मुझे याद है उन दिनों मुझे हसाया था आपने 
मुझे गुनाह करने से बचा तो लिया ( क्योंकि मैं आत्मदाह का प्रयाश कर रहा था )
मगर फिर गुनाह करने पर मजबूर किया आपने 
मैंने तो हार मान ली थी जिंदगी से 
मगर क्यों फिर मुझको जीना सिखाया आपने 
यूँ तो हम फिरते थे किस्मत के मारो की तरह 
लेकिन मुक्क़दर का सिकंदर हमको बनाया आपने 
और अब जो आ गया है जिंदगी का आखिरी पड़ाव 
अब तो शरीर भी लगा है मेरा हाफ़ने........
अब तो निभा जाओ वो वादा, वो कसमे 
जो कभी अनजाने में हमसे किये  थे  आपने 
सोचता हूँ अब मैं मेरे हमसफ़र 
क्यों मुझे जिंदगी देकर सताया आपने 
इतने गुनहाओ के बाद ,जिंदगी से जाकर 
क्यों अपने पी के को रुलाया आपने......... 

Monday 2 May 2011

मेरा हमसफ़र

सोता है जब रात में ये सारा शहर 
तब आता है मिलने मुझे मेरा हमसफ़र 
मेरे हमसफ़र की ये बात है सवाली 
मेरी हर बात को वो बताता है निराली 
मैं चलता हूँ चाहे कैसी भी हो डगर 
क्योंकि मेरे साथ रहता है मेरा हमसफ़र 
तन्हाई को महफ़िल में करता है मगर 
फिर मेरे साथ पलके भिगोता है मगर 
मेरे अश्को को आँखों में संजोता है मगर 
तब मुझे याद आता है मेरा हमसफ़र 
सोता है जब रात में ये सारा शहर 
तब आता है मिलने मुझे मेरा हमसफ़र 

सोचा ....आज लिख ही दूं

और अब प्रस्तुत है मदर डे के लिए कविता 
बहुत दिन से सोच रहा था की माँ के बारे में कुछ लिखू ........

सोचा ....आज लिख ही दूं 

सोचता हूँ बड़े इत्मिनान से जब माँ 
की तेरे ही साए में निकले मेरी जां
तेरे घर के आगे जो निकला था कारवां 
उसमे ये सामिल था तेरा ये नौजवां
कितनी ही बार मुझको ,पड़ा मुस्किलो से लड़ना 
उस वक़्त तेरी दुआओं ने दिखाया कमाल
 जिसने कभी न हारने दिया  तेरा लाल 
अब क्या करे , जब चारो तरफ है खिजां 
सोचता हूँ बड़े इत्मिनान से जब माँ 
की तेरे ही साए में निकले मेरी जां
तुने ही कहा था की जा मेरा नाम रोशन करना 
उसके लिए न जाने कितनी बार पड़ा मुझको मरना 
लेकिन मेरे पास है आज भी तेरा निशां
सोचता हूँ बड़े इत्मिनान से जब माँ 
की तेरे ही साए में निकले मेरी जां

आपका आभारी : पी के शर्मा