Saturday, 30 April 2011

निर्धन के दर्द की दवा

तुमको सुना रहा हूँ एक गाँव की कहानी 
सूरत से आप जैसे इन्सान की कहानी 
बस्ती से थोडा हटके एक झोपडी खड़ी थी 
भादो की रात काली ले मोर्चा अड़ी थी 
सैलाब आ गया था बारिश घनी हुई थी 
हर बार की तरह ये कुछ बात न नई थी 
बच्चा था उम्र १० थी चेचक निकल रही थी 
सोले फफोले टाँके सब देह जल रही थी 
दमड़ी न पास में थी न पास में था जेवर 
कोई उधार क्यों दे इन्सान खुश्क बेजर
माँ बाप दोनों रातों करवट बदल रहे थे 
बच्चे को देख कर आंसू निकल रहे थे 
लो बाप उठ के बैठा कोई सवाल लेकर 
या बेबसी का आलम कोई जमाल लेकर 
सोचा अपने आप को ही कोई सजा दूं 
अब मैं अपने लाल को  क्या दवा दूं 
इन सब से अच्छा है इसका गला दबा दूं 
चेचक से मर गया था यह गाँव में हवा दूं 
बेटे के पास जाकर जैसे गला दबाया 
आवाज़ पर न निकली और कंठ भर के आया 
ममता आ कर बोली कैसा ये बाप है तू 
किस जनम का बैरी है , सांप है तू 
अब तुम ही बताओ यारो किसकी खता बताओ 
सामिल है अहले भगवान, किसको सजा सुनाओ 
एक अनुरोध :-इस मंच पर आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया, बस जाने से पहले एक गुजारिश है साहब की- 'कुछ तो कहते जाइये जो याद आप हमको भी रहें, अच्छा नहीं तो बुरा सही पर कुछ तो लिखते जाइये


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