Friday 30 December 2011

फिर किसलिए है ये इंतज़ार ....

एक बार बता जा मेरे यार !
क्या तुझको भी है मुझसे प्यार !!

गर है तुझको भी मुझसे प्यार !
फिर किसलिए है ये इंतज़ार !!

भवर बीच है कश्ती मेरी !
और उस पार है बस्ती तेरी !!
तू देख रहा है साहिल से !
कब कश्ती होगी मेरी पार !!

गर है तुझको भी मुझसे प्यार !
फिर किसलिए है ये इंतज़ार !!

कुछ याद है मुझको वो सपने ! 
कुछ साथ थे मेरे भी अपने !!
वो ख्वाब टूटे , और आप भी छूटे !
इश्क का चढ़ा है जबसे खुमार !!

गर है तुझको भी मुझसे प्यार !
फिर किसलिए है ये इंतज़ार !! 



Wednesday 21 December 2011

कहीं ये अश्क ही ना बन जाये ग़ज़ल ..

यू तो हंसती है मेरी आँखें हरपल !
कहीं ये अश्क ही ना बन जाये ग़ज़ल !!

तुम भी कुछ बोलो , चुप क्यों हो !
इस मुश्किल का कोई , निकालो हल !!  

राह चलते में साथ , होगा काफिला !
क्या करोगे ,तन्हाई जब होगी कल !!

रश्क ना कर, तुझको भी मंजिल मिलेगी !
यूं ही नहीं मिलता , मेहनत का भी फल !!

मैं जानता हूँ, कुछ रूठे से है वो मुझसे ! 
मना रहा हूँ , शायद मान जायेंगे कल  !!

यू तो हंसती है मेरी आँखें हरपल !
कहीं ये अश्क ही ना बन जाये ग़ज़ल !!

Monday 28 November 2011

जिंदगी ....

जिंदगी को महसूस कर रहा था मैं
जिस पल तू मेरे पास थी ....
यू तो तूफा आते गये जिंदगी में मेरी 
पर फिर भी जीने की एक आस थी  !

बीच मझधार में छोड़ा था मेरी कश्ती को 
तुमसे नहीं थी उम्मीद , ,,,,,,,
उजड़ा ही छोड़ गये मेरी बस्ती को 
मौत नहीं आई थी तब तक ,
बाकि अभी कुछ साँस थी ....

जिंदगी को महसूस कर रहा था मैं
जिस पल तू मेरे पास थी ....
यू तो तूफा आते गये जिंदगी में मेरी 
पर फिर भी जीने की एक आस थी  !

जिंदगी मेरी वीरान हो गयी 
मुझको जिंदा देख तू हैरान हो गयी 
मैं तुझसे वफा निभाता गया उम्र भर 
और तू बेवफा सरेआम हो गयी 
देखि थी उस रोज़ जो तुने वो लाशे 
वो मेरी नहीं मेरे साये की लाश थी 

जिंदगी को महसूस कर रहा था मैं
जिस पल तू मेरे पास थी ....
यू तो तूफा आते गये जिंदगी में मेरी 
पर फिर भी जीने की एक आस थी  !

Saturday 26 November 2011

तेरे साथ दो पल जिंदगी,,,,


तेरे साथ दो पल जिंदगी 
बिताने का अरमान था ,,

मैंने तुझको समझा था अपना 
देखा था तेरे साथ एक सपना 
वो सपना मेरा टूट गया 
साथ भी तेरा छुट गया 

जिंदगी भर मैं तुझ पर करता रहा ऐतबार 
लुटाता रहा तुझ पर बस प्यार ही प्यार 
बदनाम हुआ मैं इस तेरे शहर में 
एक तुने मुझे ना समझा यार  

एक बार जो तुने समझा होता 
जो हुआ आज , वो ना होता 
कोई लाश पे मेरी ना रोता 
और इतनी कम उम्र में ये हादसा 
मेरे साथ  ना हुआ होता 

अब हुआ जो, मेरे यार हुआ 
नीलाम जो मेरा प्यार हुआ 
कसम है तुझको , मत रोना 
इन आँखों को अश्को से ना धोना 

अब बताना चाहूँगा ,जो हुआ मेरा सम्मान था 
तेरे शहर में जो हुआ मेरा अपमान था ,
दो पल साथ गर तेरा मिल जाता 
यही मेरे जीने का फरमान था 

तेरे साथ दो पल जिंदगी 
बिताने का अरमान था 

Saturday 12 November 2011

आज वो हमको छोड़ गये ..........

जिसके लिए सबको छोड़ा 
आज वो हमको छोड़ गये 

हमने की वफा उम्रभर 
वो दिल हमारा तोड़ गये

माना कसूर हमारा था 
पर इतना तो बतलाना था 
बीच मझधार में मेरी 
कसती को डूबता छोड़ गये 

कितनी हसी थी जिंदगी मेरी 
तू ही तो थी जिंदगी मेरी 
क्यों मेरी जिंदगी को 
अन्जान डगर पर मोड़ गये 

जिसके लिए सबको छोड़ा 
आज वो हमको छोड़ गये 

हमने की वफा उम्रभर 
वो दिल हमारा तोड़ गये

Saturday 5 November 2011


मरता हूँ मैं पल पल
मगर तुमको इससे क्या 
कर बैठा तुमसे प्यार 
मगर तुमको इससे क्या
तेरे प्यार मैं हम हुए बदनाम 
मगर तुमको इससे क्या
लुट गया , मैं सहर ओ शाम,   
मगर तुमको इससे क्या
दुनिया से जा रहा हूँ, तेरी खातिर
मगर तुमको इससे क्या
तेरे प्यार की है ये सजा
रहेगी उम्र भर , तेरी इल्त्जां
मालुम है मुझे तेरा इनकार
पर करता रहूँगा,फिर भी प्यार
मगर तुमको इससे क्या

Wednesday 2 November 2011

मरती है जब इंसानियत ......


मिलता हूँ मैं जब तुमसे 
एक अजीब एहसास होता है 

कुछ कह नहीं पाता हूँ 
जब तू पास होता है 

यूं तो मिलते है हजारो रोज़ 
मगर कोई एक उनमे खास होता है 

यूं तो मरता है इंसान लाखो बार जिंदगी में 
पर मरती है जब इंसानियत 
तो वो एक जिंदा लाश होता है 

रिशते वोही रंग लाते है 
जिनमे एक विश्वास होता है 

मिलता हूँ जब मैं तुमसे 
एक अजीब एहसास होता है 

Monday 31 October 2011

जब जब मैंने कलम उठाई .....

तुम पर कुछ लिखने की खातिर 
जब जब मैंने कलम उठाई 

आई याद तुम्हारी मुझको 
और आँख भी मेरी भर आई 
मैंने तुमको कितना चाहा
और पल पल मैंने वफा निभाई 

तुम पर कुछ लिखने की खातिर 
जब जब मैंने कलम उठाई 

सोचा तू मुझको समझेगी 
किस्मत मेरी भी चमकेगी 
पर तुने मुझको न पहचाना 
भरी महफ़िल में की रुसवाई 

तुम पर कुछ लिखने की खातिर 
जब जब मैंने कलम उठाई 

तेरे लिए सपने भी टूटे 
तेरे लिए अपने भी छूटे 
सोचा था बजेगी एक दिन 
मेरे घर भी सहनाई

तुम पर कुछ लिखने की खातिर 
जब जब मैंने कलम उठाई 

दुनिया से मैं जाऊंगा जिसदिन 
पल पल याद आऊंगा उस दिन 
हर पल तेरे साथ रहेगी 
बस मेरी ही परछाई 

तुम पर कुछ लिखने की खातिर 
जब जब मैंने कलम उठाई 

Sunday 30 October 2011

जिंदगी आज कुछ फीकी सी है ........


जिंदगी आज कुछ फीकी सी है 
आज किस्मत कुछ रूठी सी है
माना सारा कसूर मेरा ही है,,,
फिर वो क्यों इतनी दुखी सी है 

वो , जिसने सबकुछ लुटा दिया 
वक़्त ने भी उसको पल पल दगा दिया 
वो जो कभी हंसती थी , मुझे देखकर 
वो भी आज कुछ टूटी सी है ,,,,,

और आज जब, चाहने लगा हूँ उसको 
पूरी जिंदगी गम दिए हैं जिसको 
पंछियों ने भी चेहचाहना छोड़ दिया था 
और वर्षो बाद कोयल आज कूकी सी है 

Saturday 22 October 2011

                    हैप्पी दीपावली .... 




 
                                                                                                                         आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये 
 
 

Saturday 15 October 2011

ये शर्मा जी भी जाने क्या क्या लिख जाते है ....

मैं ही नहीं बताता, ये सभी बताते है 
की जिंदगी में ऐसे पल भी आते है 
हमारे अपने ही हमें रुलाते है 

कभी लहरें ही डूबा देती है कश्ती को 
तो कभी तूफ़ान भी साहिल बन जाते है ,

कभी हँसाता था मैं लोगो को 
और आज मेरे ही सामने ,
लोग मुझपर हंस जाते है,,,

हालाँकि ये मुमकिन नहीं 
इस ज़माने के दौर में 
मगर गर तुम चाहो तो 
कभी कभी सपने भी सच हो जाते है 
 
जब मैं लिखता हूँ ....
कोई कुछ नहीं कहता 
पर लिखने के बाद ,कहते है 
की ये शर्मा जी भी जाने क्या क्या लिख जाते है 

Tuesday 11 October 2011

तुमने ये ऐलान सरेआम कर दिया, जज्बात को मेरे नीलाम कर दिया


तुमने ये ऐलान सरेआम कर दिया
जज्बात को मेरे नीलाम कर दिया 

वो भी दिन थे , कभी मैकदे में 
हमारी शामे रंगीन हुआ करती थी 
झलकाया करती थी तुम जाम दर जाम 
फिर खाली आज क्यों ये जाम कर दिया 

तुमने ये ऐलान सरेआम कर दिया
जज्बात को मेरे नीलाम कर दिया 

याद है मुझको आज भी ,वो 
काली सुबह, वो भयानक तूफ़ान 
मगर वो भी इस पी के को हरा नही पाया  
मगर तुमने आज मेरा काम तमाम कर दिया 

तुमने ये ऐलान सरेआम कर दिया
जज्बात को मेरे नीलाम कर दिया 

मैं ऐसा था नहीं पहले , मुझे तुमने है बदला 
नहीं सोचा था मैंने , होगा ये भी कभी 
नहीं लिखा मैंने ता-उम्र कुछ भी , 
मगर आज तुमने लिखने का मेरे इंतजाम कर दिया 

तुमने ये ऐलान सरेआम कर दिया
जज्बात को मेरे नीलाम कर दिया  

Saturday 1 October 2011

मिट चली उनकी सब निशानी ..

मिट चली उनकी सब निशानी 
बनकर फिर ,आज एक कहानी 

उनको इतना प्यार किया था 
उसने भी बड़ा प्यार दिया था 
आज याद उनको करते करते 
आँखों में जब आ गया पानी 

मिट चली उनकी सब निशानी
बनकर फिर ,आज एक कहानी 

इस दुनिया में जैसा सुना था 
हमने भी इक सपना बुना था 
सब कुछ लुटा बैठे है .......
आई ऐसे वक़्त ए रवानी 

मिट चली उनकी सब निशानी
बनकर फिर ,आज एक कहानी 

अब जी कर हम क्या करेंगे 
सोचा अब हम भी मरेंगे 
दे दिया घर भार भी दान 
दुनिया वाले कहने लगे दानी 

मिट चली उनकी सब निशानी
बनकर फिर ,आज एक कहानी 

Thursday 29 September 2011

कभी हंसती है ये आँखें , तो कभी भर आती है

कभी कभी जब हमको 
उनकी याद आती है 
हँसते  हुए भी हो तो भी 
ये आँखें भर आती है 
हमने कई बार कहा है उनसे 
की हमे यूँ ना सताया करो 
पर पता नही उन्हें क्या मजा आता है 
जो हमको इतना सताती है 
सता हमको कितना भी ले वो 
लेकिन गर ये सुनले 
की यादो में उनकी हमने 
खाना नहीं खाया है 
तो वो जब तक हमको न खिला ले 
वो खुद भी नहीं खाती है 
वो प्यार से डांट कर हमको 
अपने हाथों से खाना खिलाती है 
और आँखों में आँखें ऐसे मिलती है 
कभी हंसती है ये आँखें , तो कभी भर आती है 

Tuesday 27 September 2011

कभी मेरी ख़ामोशी को सुनना ....

मेरी जिंदगी एक ख़ामोशी है  
कभी मेरी ख़ामोशी को सुनना 

ये जो ख्वाब है शीशे की तरह होते है 
मेरी तरह कभी , सपने ना बुनना 

सपने भी टूट जाते है ,अपने भी रूठ जाते है 
मेरी तरह कोई हमसफ़र मत चुनना 

ये देते है आवाज़ बड़ी मासूमियत से 
और लुटते है तुम्हे और तुम्हारे जज्बात को 

थी मेरी जिंदगी भी एक खुशरंग कहानी 
और अब बचा है ,तो सिर्फ एक आँखों में पानी 

रोकेंगे तुम्हे ,बहुत तररकी के रास्ते पे जाने से 
कोई देगा कसम , तो बुलाएगा कोई बहाने से 

मगर ,गर बढ़ना है आगे ,तो बातो में  ना लुभना
कोई अपना भी बुलाये तुम्हे , मगर ना रुकना 

मेरी जिंदगी एक ख़ामोशी है  
कभी मेरी ख़ामोशी को सुनना 

Saturday 24 September 2011

यूं उदासी देखकर चेहरे पर तेरे आँखों में अश्क भर आये मेरे ..

यूं उदासी देखकर चेहरे पर तेरे 
आँखों में अश्क भर आये मेरे 

याद करता हूँ आज भी वो पल 
जो बिताये  थे,मैंने  तेरे साथ 
याद है मुझको आज भी वो शाम 
जब होती थी हमारी मुलाकात 
रोते हुए भी , हंस देता हूँ 
आते है याद जब , तेरी बाहों के घेरे 

यूं उदासी देखकर चेहरे पर तेरे 
आँखों में अश्क भर आये मेरे 

यूं तो लिखता हूँ , हर सह मैं तुझे 
मगर याद मैं तेरी लिखी वो पहली नज्म 
और हुए थे जुदा जब हम दोनों 
हुई थी आँखें दोनों की नम
खेलते थे बचपन मैं , हम दोनों 
याद है मुझको वो तम्बू , वो डेरे 

यूं उदासी देखकर चेहरे पर तेरे 
आँखों में अश्क भर आये मेरे 

Tuesday 20 September 2011

मेरे मन की हसरत थी........ तेरी आँखों में बस जाने की

मेरे  मन की हसरत थी 
तेरी आँखों में बस जाने की 

एक तेरे दीदार की खातिर 
क्या क्या नहीं किया मैंने  
उस सुंदर सी मुस्कान पर तेरी 
आदत हो गयी मुझे भी शर्माने की 

मेरे  मन की हसरत थी 
तेरी आँखों में बस जाने की 

नींद नहीं आती थी मुझको 
देख न लू जब तक तुझको 
कट गयी जिंदगी इंतज़ार में तेरे 
पर अभी आशा है तेरे आने की 

मेरे  मन की हसरत थी 
तेरी आँखों में बस जाने की 

तुम प्यार करो या ना भी करो 
मुझको इसका गिला नही 
बस एक बार आकर ,पूरी करदो 
तम्मना इस दीवाने की 

मेरे  मन की हसरत थी 
तेरी आँखों में बस जाने की 

बिन तेरे बेरंग है महफ़िल 
आकर करदो इसको झिलमिल 
शंमा बनकर जला जाओ 
इस परवाने को आदत है जल जाने की 

मेरे  मन की हसरत थी 
तेरी आँखों में बस जाने की 

Monday 19 September 2011

देखा है मैंने , मिटते हुए अपनी हस्ती को

देखा है मैंने ,
मिटते हुए अपनी हस्ती को
 
वो कुछ दरिन्दे थे , शायद 
जिन्होंने मिटाया मेरी हस्ती को 
नहीं मालुम मुझे क्या थी मेरी खता 
इतनी बड़ी दी जो उन्होंने मुझको सजा 
वो जो आशियाना था मेरा 
कर दिया आग के हवाले 
मेरे ही सामने जला दिया मेरी बस्ती को .

अब आपसे क्या कहूँ 
देखा है मैंने ,
मिटते हुए अपनी हस्ती को ....

वो आशियाना सामने, मेरे जलकर राख हो गया 
वो मंजिल ,वो सपने,सब खाख हो गया 
लोग भी बहुत आये थे, मुझको सांत्वना देने 
कुछ बनकर आये इन्सां,कुछ अपना उधार लेने 
सब कुछ तो ठीक था , इस जिंदगी मैं मेरी 
मगर एक ही सैलाब ने ..
हिलाकर रख दिया मेरी कश्ती  को ....

और पल भर मैं ,मिटा कर रख दिया 
मेरे ही सामने ......
मेरी ही हस्ती को 

Friday 16 September 2011

टूटे हुए ख्वाबो की दास्ताँ मुझसे सुन

टूटे हुए ख्वाबो की दास्ताँ मुझसे सुन 
मेरी तरह एक हमसफ़र तू भी चुन 

एक ख्वाब जो मैंने भी देखा था 
जो पल भर मैं ही टूट गया !
मैं देखता रहा हाथों की लकीरे 
नसीब हाथों से मेरे फिसलता रहा 
अब टूट गए वो सपने मेरे 
अब छुट गये वो अपने मेरे 
किस्मत की कहानी क्या बताऊ तुमको 
एक छोटा सा मशवरा देता हूँ तुमको 
न मेरी तरह कभी तू सपने बुन 

टूटे हुए ख्वाबो की दास्ताँ मुझसे सुन 
मेरी तरह एक हमसफ़र तू भी चुन 

Wednesday 14 September 2011

मेरी कविताओ पर तुम दाद तो दो ..


मैं सुना रहा हूँ तुमको कब से 
मेरी कविताओ पर तुम दाद तो दो ..
मानता हूँ मैं ,हुई है मुझसे खता 
मेरी खता की ,इतनी बड़ी न दो सजा 
मांग रहा हूँ माफ़ी कब से .....
अब कर भी तुम माफ़ तो दो 

मैं सुना रहा हूँ तुमको कब से 
मेरी कविताओ पर तुम दाद तो दो ..

तुमसे दूर होकर ,हम सोना ही भूल गए 
और मिले जब बिछड़ कर तुमसे 
रोना तो चाहा,मगर रोना ही भूल गए 
अब इस मिलने की ख़ुशी में ...
हाथों में मेरे तुम जाम तो दो ...

मैं सुना रहा हूँ तुमको कब से 
मेरी कविताओ पर तुम दाद तो दो ..

कब से निहार रहा हूँ तुझको मेरे हमसफर 
चल चले हम दोनों ,प्यार की डगर 
वो कब से छुपा कर बैठे हो 
अब खोल भी वो तुम राज़ तो दो 

मैं सुना रहा हूँ तुमको कब से 
मेरी कविताओ पर तुम दाद तो दो ..

एक बात सुनोगे गर..... सुन सको तो कह लूँ


एक बात सुनोगे गर 
सुन सको तो कह लूँ 
ज़ख्म जो तुने दिए 
बता उनको कैसे सह लूँ 

आँखों में देख जरा तू 
अश्क अश्क ही है इनमे 
है जिंदगी मेरी तुझसे 
तेरे बिन कैसे रह लूँ 

ये अश्क जो अब हो चले है 
समुन्दर से भी गहरे 
सोचता हों अब मैं भी 
साथ इनके ही बह लूँ  

अब तन्हाई भी साथ नहीं देती 
काश .. तुम एक बार हंस देती 
कहना चाहता हूँ आज भी .. वो ही 
रुकोगे एक पल जरा 
सूनने को दास्ताँ ..इस दीवाने की 
गर सुन सको तो कह लूँ  

Tuesday 13 September 2011

तो पढना कभी मेरी उदासी को ...............

पढना चाहते हो मुझे गर 
तो पढना कभी मेरी उदासी को 
समझना चाहते हो मुझे गर 
तो समझना मेरे जज्बातों को 
मिलना चाहते हो मुझसे गर 
तो मिलना मेरी तन्हाइयो से 
बाटना चाहते हो गर दर्द मेरा 
तो बाटना मेरी रुसवाइयो को 
तुम मुझे समझ जाओगे उसी दिन 
दिन भी नहीं कटेगा तुम्हारा मेरे बिन 
ये सच है हूँ मैं कुछ भी नहीं 
लेकिन तुम्हे पाकर खुश हूँ मैं 
क्योंकि तुम फिर मिलोगे एक दिन यही 
रहेगा मुझे उस दिन का इंतजार 
होगा जिस दिन मेरे प्यार का इज़हार 
जो भाग रहा है पैसे की अंधी दोड़ में 
वो भी बस यही कहेगा ,प्यार ,....प्यार..प्यार .....

Saturday 10 September 2011

जब आँख लगी तो ख्वाबो में तुम चली आई ......


आज फिर तेरी वो बाते याद आई 
जिन्होंने हलचल मेरे दिल विच मचाई |

वो आपका चेहरा आज फिर 
मुस्कुरा कर सामने मेरे आ गया 
दिल में मेरे एहसास हुआ ऐसा 
जैसे कोई भूचाल आ गया 
फिर ले गया मन तेरी यादों की कोठरी में 
और याद जब तुझको किया तो आँखें भर आई 

आज फिर तेरी वो बाते याद आई 
जिन्होंने हलचल मेरे दिल विच मचाई |

वो पल आज भी याद है मुझे 
इन आँखों ने देखा था जिस दिन तुझे 
देखते ही तुझको मैं सिहर उठा 
मेरा पागल दिल भी पिघल उठा 
उस रात मुझको नीद भी नहीं आई 
और जब आँख लगी तो ख्वाबो में तुम चली आई 

आज फिर तेरी वो बाते याद आई 
जिन्होंने हलचल मेरे दिल विच मचाई |

ना तुम मुझको जान सके 
ना हम तुम को पहचान सके 
मालूम नहीं मुझे मगर लोग कहते है 
की रोया था बादल भी उस रात 
हुई जिस दिन तेरी मेरी विदाई 

आज फिर तेरी वो बाते याद आई 
जिन्होंने हलचल मेरे दिल विच मचाई |


 
 



Friday 9 September 2011

मेरी ख्वाबो की दुनिया .......... अब सवरने लगी है |

मेरी ख्वाबो की दुनिया 
अब सवरने लगी है |
थी जिसको नफरत मुझसे 
वो भी मुझपर मरने लगी है 

मेरी ख्वाबो की दुनिया
अब सवरने लगी है |

कसूर मेरा ही था की 
वो मुझसे रूठे रहे उम्र भर 
उनके रूठने से मिले जो ज़ख्म 
उनको वो ही अब भरने लगी है 

मेरी ख्वाबो की दुनिया
अब सवरने लगी है |

यूँ तो की कोशिश बहुत की 
हमने उन्हें मानाने की .....
जिनको नफरत थी चेहरे से हमारे 
देखकर वो भी हमको हंसने लगी है 

मेरी ख्वाबो की दुनिया
अब सवरने लगी है |

उस भगवन के उपकार से 
हूँ मैं आज उस मुकाम पर 
की लोग सलाह लेते है मुझसे 
दुनिया जिनकी बिखरने लगी है 

मेरी ख्वाबो की दुनिया
अब सवरने लगी है |

Monday 5 September 2011

इस डूबी हुई कश्ती को सहारा नहीं मिला

इस डूबी हुई कश्ती को सहारा नहीं मिला 
अपने तो बहुत मिले ,कोई हमारा नहीं मिला 

याद आता है वो पल आज भी 
डूबी थी कश्ती मेरी जिस दिन 
थामा तो हाथ बहुतो ने था मेरा 
मगर फिर भी किनारा नहीं मिला 

इस डूबी हुई कश्ती को सहारा नहीं मिला 
अपने तो बहुत मिले ,कोई हमारा नहीं मिला 

माना उस तूफ़ान में लाखों बेघर हुए थे 
फिर कुछ आये भी थे सांत्वना देने के लिए 
जिंदगी तो मिल मुझे भी मिल जाती ........
मगर क्या करू साथ जब तुम्हारा नहीं मिला 

इस डूबी हुई कश्ती को सहारा नहीं मिला 
अपने तो बहुत मिले ,कोई हमारा नहीं मिला 

तुम्हारी इस बेरुखी को मैं क्या नाम देता 
अपने साये को क्यों मैं बदनाम कर देता 
मुझे अफ़सोस है आज भी इस बात का 
वो ख़त आपको हमारा नहीं मिला 

इस डूबी हुई कश्ती को सहारा नहीं मिला 
अपने तो बहुत मिले ,कोई हमारा नहीं मिला 

Saturday 3 September 2011

इस कविता को अब मैं क्या नाम दूं ......

चला चल मैं यू ही चला जा रहा था 
अतीत पर अपने मैं पछता रहा था 
चला जा रहा था मैं मंजिल को पाने 
कुछ रूठे हुए अपनों को मनाने.........
अचानक ही झटका दिया जिंदगी ने 
जमी पर पटका दिया जिंदगी ने 
मैं हैरान था , कुछ परेशान था 
फिर मैंने वहां कुछ था ऐसा देखा 
सवारने लगी मेरे हाथो की रेखा 
निकला था मैं जिस मंजिल को पाने 
लगी वो धीरे धीरे मेरे पास आने 
फिर मुझको एक आवाज़ आई 
चारो तरफ से दी जो सुनाई
वो आवाजे कुछ यूं बताती है 
की पतझड़ के बाद ,बहारे आती है 
 लगे जब भी ह्रदय तुम्हारा घबराना 
तुम सीधे चले मेरे पास आना 
पता है तुमको ,हूँ मैं गरीब 
पर जैसा भी हूँ , हूँ तुम्हारा नसीब 
इस कविता को अब मैं क्या नाम दूं 
सोचता हूँ , कलम को यहीं विराम दूं. 


Friday 2 September 2011

क्यों भर आई आज ये आँखें .........

क्यों भर आई आज ये आँखें
हम भी है भई कितने अभागे 
  
प्यार किया था जिससे हमने
था बड़ा मासूम वो चेहरा
खबर लगी दुनिया को इसकी
लगा दिया हम पर पहरा
हमारी खातिर जिसने भैया
कुरबां कर दी अपनी सांसे

क्यों भर आई आज ये आँखें
हम भी है भई कितने अभागे  

अब एक दुआ है मेरी रब से
देना प्यार उसी का मुझको
पल पल जिसको याद हूँ करता
पल पल करता जिसकी बाते

क्यों भर आई आज ये आँखें
हम भी है भई कितने अभागे  

हम दोनों का क्या था कसूर
किया हमको क्यों मजबूर
उम्र ही क्या थी उसकी अभी
जिसकी रह गयी सिर्फ यादे

क्यों भर आई आज ये आँखें
हम भी है भई कितने अभागे 
  
अब हम भी चाहते है जाना
हमराही का प्यार है पाना
मेरी एक कविता पर
दी थी जिसने इतनी दादे

क्यों भर आई आज ये आँखें
हम भी है भई कितने अभागे   

Thursday 1 September 2011

आँखों में मेरी कुछ नमी सी है..........

आज आँखों में मेरी कुछ नमी सी है
है तो सब कुछ मेरे पास, मगर  
फिर भी न जाने कुछ कमी सी है    
 
तुमने मुझको जीना सिखाया 
गिरकर फिर संभलना सिखाया
 और आज ,हाल ये है मेरा की
तेरे लौट आने के इंतजार में
सांसे मेरी अभी थमी सी है
 
आज आँखों में मेरी कुछ नमी सी है
है तो सब कुछ मेरे पास, मगर  
फिर भी न जाने कुछ कमी सी है   
 
बसे भी ना थे , की घर उजड़ गए 
अभी संभले ही थे, की पैर उखड गए
एक उम्मीद की शमा बाकी है अभी
कहीं उजड़ ना जाये फिर से
ये मेरी दुनिया अभी बसी सी है
 
आज आँखों में मेरी कुछ नमी सी है
है तो सब कुछ मेरे पास, मगर  
फिर भी न जाने कुछ कमी सी है    
 
 
 
 

Wednesday 31 August 2011

अक्सर तन्हाई में उसको याद करता हूँ

एक गुनाह मैं बार-बार करता हूँ
अक्सर तन्हाई में उसको याद करता हूँ 
 
उसकी खातिर लड़ा बहुत हालात से
जो खेल गयी मुझसे और मेरे जज्बात से
जिसने दिए मुझे दर्द -ओ- गम तमाम 
उसी बेवफा को आज मैं माफ़ करता हूँ   
 
एक गुनाह मैं बार-बार करता हूँ
अक्सर तन्हाई में उसको याद करता हूँ 
 
सुना है , अब वो भी याद करने लगी है
इस दीवाने पर जाँ निसार करने लगी है
शायद मुह्हबत मेरी रंग लाएगी एक दिन
उसी दिन का मैं इंतज़ार करता हूँ ........
 
एक गुनाह मैं बार-बार करता हूँ
अक्सर तन्हाई में उसको याद करता हूँ 
 
जिस पल वो पास मेरे आएगी
मेरी दुनिया और हसीं हो जाएगी
कहेगी वो भी, की प्यार है मुझे तुमसे
जिसको मैं जाँ से ज्यादा प्यार करता हूँ
 
एक गुनाह मैं बार-बार करता हूँ
अक्सर तन्हाई में उसको याद करता हूँ 

Tuesday 30 August 2011

सोचता हूँ आज कह दूं .......................

सोचता हूँ आज कह दूं 
दिल की बात जुबां पे ला दूं 
उनकी मुस्कान आज कुछ अलग है 
उनका मिजाज भी शायद आज बदला है 
सोचता हूँ आज तो कह दूं 
दिल की बात जुबां पे ला दूं 
यूँ ही सोचते सोचते कहीं वो चले ना जाये 
कल का क्या पता वो आये या ना आये 
सोचता हूँ आज कह दूं 
दिल की बात जुबां पे ला दूं 
मगर यूँ ही सोचते सोचते शाम हो चली 
और शाम होते ही वो भी घर को चली 
दिल के जज्बात दिल में रह गए 
कहना था कुछ और उनसे 
और हम कुछ और कह गए 
सोचता तो आज भी हूँ 
की मैंने इतना क्यों सोचा 
की सोचने सोचने में शाम हो गयी 
और बिना कुछ कहे ही 
मेरे इश्क की चर्चा सरे आम हो गयी 
अब मैं इस घटना को क्या नाम दूं 
सोचता हूँ आज भी कह दूं 
दिल की बात जुबां पे ला दूं 

Monday 29 August 2011

वो रास्ते आज फिर सुनसान से है, ये आँखें नम पिछली शाम से है

वो रास्ते आज फिर सुनसान से है 
ये आँखें नम पिछली शाम से है  
 
वो गए थे मुझे जब भी तनहा छोड़कर
मेरे विश्वास को, मेरे वादों को तोड़कर
जिनका जिक्र भी छुपाते थे सबसे
वो ही आज सरेआम से है
 
वो रास्ते आज फिर सुनसान से है 
ये आँखें नम पिछली शाम से है  
 
मुझे याद है आज भी वो दिन
जिया था मैं जिसपल उसके बिन
यूं तो मना किया था उन्होंने पीने से
मगर आज हाथों में फिर जाम से है
 
वो रास्ते आज फिर सुनसान से है 
ये आँखें नम पिछली शाम से है  
 
और आज जब रुकने लगी साँस
मन कहने लगा होकर उदास
लो करदो मेरा क़त्ल ए आम
मुझे अब लगाव नहीं इस जान से है
 
वो रास्ते आज फिर सुनसान से है 
ये आँखें नम पिछली शाम से है  
 
 

Saturday 27 August 2011

तेरे आने की इक बंधी हुई है आश, तेरे बिन मैं हूँ जाना ,बस इक जिंदा लाश

तेरे आने की इक बंधी हुई है आश 
तेरे बिन मैं हूँ जाना ,बस इक जिंदा लाश 
कब से राह तेरी  देख रहा हूँ ...
यादों में तुझे सोच रहा हूँ 
तेरे इक दीदार की खातिर रुकी हुई है साँस 

तेरे आने की इक बंधी हुई है आश 
तेरे बिन मैं हूँ जाना ,बस इक जिंदा लाश 

यूं तो मिले बहुत मुझे इस जिंदगी ए डगर में 
क्यों बस तुम ही बसे इस जिगर में 
तुम्हे भी नहीं होगा मालूम 
तुम हो कितने खाश 

तेरे आने की इक बंधी हुई है आश 
तेरे बिन मैं हूँ जाना ,बस इक जिंदा लाश 

मैंने शोहरत बहुत कमाया 
पर बात समझ बाद में आया 
आज हूँ मैं अपनी जिंदगी का शेन्शाह
पर कुछ भी नहीं है मेरे पास

तेरे आने की इक बंधी हुई है आश 
तेरे बिन मैं हूँ जाना ,बस इक जिंदा लाश 

Sunday 21 August 2011

आज हमको ठुकराकर जा तो रहे हो


आज हमको ठुकराकर जा तो रहे हो 
मगर आने वाले कल में आप पछताएँगे 

आज आप जा रहे हो हमसे मुह मोडकर 
कल हम भी चले जायेंगे तुमको तडपता छोडकर 
और फिर आप हमको बुलाओगे 
मगर हम नहीं आयेंगे 
क्योंकि तुमसे बिछड़ कर हम 
इस दुनिया में नहीं उस दुनिया में चले जयेंगे 

आज हमको ठुकराकर जा तो रहे हो 
मगर आने वाले कल में आप पछताएँगे 

तुम सोचना यू ही मुझको खवाबो में 
और गर करना हो महसूस मुझे 
तो जाना गुलाबो की खुसबो में 
मैं मिलूँगा तुमको गुलाबो में 
जिंदा रहकर भी हम तुम 
पल पल मरते रह जाएँगे 

आज हमको ठुकराकर जा तो रहे हो 
मगर आने वाले कल में आप पछताएँगे 

Friday 19 August 2011

खवाबो में देखा है जिनके लिए सेहरा आज हकीकत में देखा उनका चेहरा


खवाबो में देखा है जिनके लिए सेहरा 
आज हकीकत में देखा उनका चेहरा 

चेहरे पर मासूमियत इतनी मगरूर थी 
चेहरे पर मासूमियत इतनी मगरूर थी
और क्या बताये आपको ,,,,
जब लड़ी उनसे हमारी नजर 
कसम से आँखें उनकी शर्म से चूर चूर थी 
दीदार करने को उनका हर तरफ था कड़ा पहरा 

खवाबो में देखा है जिनके लिए सेहरा 
आज हकीकत में देखा उनका चेहरा 

सुना था आज वो चले जायेंगे 
हमको यूं ही अकेला तनहा कर जायेंगे 
आकर उन्होंने कहा की चलते है 
देखकर उनको हमने सुना की मिलते है 
यूँ तो काफी लोग थे उनके दीदार की खातिर 
और आखिरी दीदार के लिए मैं भी ठहरा 

खवाबो में देखा है जिनके लिए सेहरा 
आज हकीकत में देखा उनका चेहरा 

ऐसे हालात अब आने लगे है मेरे अपने मुझे रुलाने लगे है

ऐसे हालात अब आने लगे है 
मेरे अपने मुझे रुलाने लगे है 

कोई हँसता है ,तो कोई रोता है 
मुझे जिंदगी के इस मोड़ पर देखकर 
उन्हें नहीं पता शायद ,मुझे यहाँ आने में 
कितनी सदीयाँ कितने ज़माने लगे है 

ऐसे हालात अब आने लगे है 
मेरे अपने मुझे रुलाने लगे है 

कोई हँसता है मेरे ही सामने मुझ पर 
कहता है कोई, धिक्कार है तुझ पर 
वो जो मुझ पर कभी जाँ निसार करते थे 
आज वो ही मुझको सताने लगे है 

ऐसे हालात अब आने लगे है 
मेरे अपने मुझे रुलाने लगे है 

यहाँ पैसे को बढ़ता देखकर 
यहाँ प्यार को मरता देखकर 
पंछी भी यहाँ आने से 
अब कतराने लगे है 

ऐसे हालात अब आने लगे है 
मेरे अपने मुझे रुलाने लगे है 

Wednesday 4 May 2011

ये अश्क ही है बस अब तेरी याद की निशानी

मेरी आँखों में सजे अश्क, जो है मेरी कहानी 
ये अश्क ही है बस अब तेरी याद की निशानी 
ये अश्क जो थे मोती ,अब बन गए है पानी 
तम्मना है अब भी ,गुज़ारू तेरे ही साथ जिंदगानी 
ये कुछ और नहीं बस वक़्त की है रवानी
तुझे मालुम है की जिंदगी है एक खामोश सफ़र 
और इसमें तुझे मेरे साथ चलना है मेरे हमसफ़र 
हम होंगे साथ तो नहीं डगमगायेगी हमारी डगर 
लेकिन तू ही मुझको चली गयी छोड़कर 
साडी कसमे, सारे वादे तोड़कर 
मुझे तेरा इंतजार अब भी है जानी ........
मुझ पर भी करदे ये छोटी सी महेरबानी 
मेरी आँखों में सजे अश्क, जो है मेरी कहानी 
ये अश्क ही है बस अब तेरी याद की निशानी

Tuesday 3 May 2011

क्यों अपने पी के को रुलाया आपने.........

जिंदगी ऐ संघर्ष से जब मैं लगा था  कापने 
तब उस दौर ऐ जिंदगी में साथ थामा था मेरा आपने 
वो दिन जब मैं अपने आप पर रोता था 
मुझे याद है उन दिनों मुझे हसाया था आपने 
मुझे गुनाह करने से बचा तो लिया ( क्योंकि मैं आत्मदाह का प्रयाश कर रहा था )
मगर फिर गुनाह करने पर मजबूर किया आपने 
मैंने तो हार मान ली थी जिंदगी से 
मगर क्यों फिर मुझको जीना सिखाया आपने 
यूँ तो हम फिरते थे किस्मत के मारो की तरह 
लेकिन मुक्क़दर का सिकंदर हमको बनाया आपने 
और अब जो आ गया है जिंदगी का आखिरी पड़ाव 
अब तो शरीर भी लगा है मेरा हाफ़ने........
अब तो निभा जाओ वो वादा, वो कसमे 
जो कभी अनजाने में हमसे किये  थे  आपने 
सोचता हूँ अब मैं मेरे हमसफ़र 
क्यों मुझे जिंदगी देकर सताया आपने 
इतने गुनहाओ के बाद ,जिंदगी से जाकर 
क्यों अपने पी के को रुलाया आपने......... 

Monday 2 May 2011

मेरा हमसफ़र

सोता है जब रात में ये सारा शहर 
तब आता है मिलने मुझे मेरा हमसफ़र 
मेरे हमसफ़र की ये बात है सवाली 
मेरी हर बात को वो बताता है निराली 
मैं चलता हूँ चाहे कैसी भी हो डगर 
क्योंकि मेरे साथ रहता है मेरा हमसफ़र 
तन्हाई को महफ़िल में करता है मगर 
फिर मेरे साथ पलके भिगोता है मगर 
मेरे अश्को को आँखों में संजोता है मगर 
तब मुझे याद आता है मेरा हमसफ़र 
सोता है जब रात में ये सारा शहर 
तब आता है मिलने मुझे मेरा हमसफ़र 

सोचा ....आज लिख ही दूं

और अब प्रस्तुत है मदर डे के लिए कविता 
बहुत दिन से सोच रहा था की माँ के बारे में कुछ लिखू ........

सोचा ....आज लिख ही दूं 

सोचता हूँ बड़े इत्मिनान से जब माँ 
की तेरे ही साए में निकले मेरी जां
तेरे घर के आगे जो निकला था कारवां 
उसमे ये सामिल था तेरा ये नौजवां
कितनी ही बार मुझको ,पड़ा मुस्किलो से लड़ना 
उस वक़्त तेरी दुआओं ने दिखाया कमाल
 जिसने कभी न हारने दिया  तेरा लाल 
अब क्या करे , जब चारो तरफ है खिजां 
सोचता हूँ बड़े इत्मिनान से जब माँ 
की तेरे ही साए में निकले मेरी जां
तुने ही कहा था की जा मेरा नाम रोशन करना 
उसके लिए न जाने कितनी बार पड़ा मुझको मरना 
लेकिन मेरे पास है आज भी तेरा निशां
सोचता हूँ बड़े इत्मिनान से जब माँ 
की तेरे ही साए में निकले मेरी जां

आपका आभारी : पी के शर्मा 

Saturday 30 April 2011

नया एक लफ्ज़ हो कोई जहाँ से बात चल निकले


कहो अब क्या कहूं तुमसे 
बताओ क्या लिखूं तुमको 
मुझे तहमीद दो कोई 
मुझे उम्मीद दो कोई 
नया एक लफ्ज़ हो कोई 
जहाँ से बात चल निकले 
मेरी मुस्किल का हल निकले 
बताओ लहजा कैसा हो 
की तुमसे बात करनी है 
कहो अब क्या इरादा है 
के तुमको ये बताना है 
की मुझे तुम याद आते हो 
क्यों पी के को इतना सताते हो 

निर्धन के दर्द की दवा

तुमको सुना रहा हूँ एक गाँव की कहानी 
सूरत से आप जैसे इन्सान की कहानी 
बस्ती से थोडा हटके एक झोपडी खड़ी थी 
भादो की रात काली ले मोर्चा अड़ी थी 
सैलाब आ गया था बारिश घनी हुई थी 
हर बार की तरह ये कुछ बात न नई थी 
बच्चा था उम्र १० थी चेचक निकल रही थी 
सोले फफोले टाँके सब देह जल रही थी 
दमड़ी न पास में थी न पास में था जेवर 
कोई उधार क्यों दे इन्सान खुश्क बेजर
माँ बाप दोनों रातों करवट बदल रहे थे 
बच्चे को देख कर आंसू निकल रहे थे 
लो बाप उठ के बैठा कोई सवाल लेकर 
या बेबसी का आलम कोई जमाल लेकर 
सोचा अपने आप को ही कोई सजा दूं 
अब मैं अपने लाल को  क्या दवा दूं 
इन सब से अच्छा है इसका गला दबा दूं 
चेचक से मर गया था यह गाँव में हवा दूं 
बेटे के पास जाकर जैसे गला दबाया 
आवाज़ पर न निकली और कंठ भर के आया 
ममता आ कर बोली कैसा ये बाप है तू 
किस जनम का बैरी है , सांप है तू 
अब तुम ही बताओ यारो किसकी खता बताओ 
सामिल है अहले भगवान, किसको सजा सुनाओ 
एक अनुरोध :-इस मंच पर आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया, बस जाने से पहले एक गुजारिश है साहब की- 'कुछ तो कहते जाइये जो याद आप हमको भी रहें, अच्छा नहीं तो बुरा सही पर कुछ तो लिखते जाइये


Friday 29 April 2011

मैं लड़ा बहुत इस दुनिया से सह गया बहुत कडवे ठोकर


आ भी जाओ यूं न सताओ 
 बुलाता हूँ  मैं तुमको रो रो कर 
मैं लड़ा बहुत इस दुनिया से
सह गया बहुत कडवे ठोकर
तुम साथ रहे , मैं जीत गया
पर हार गया तुमको खोकर। 

पहले था मैं जिस घर का मालिक 
आज बना हूँ उसका मैं नोकर
तुमने मुझे कहा था हैण्ड सम  
पर अब मुझको लोग कहते है जोकर 
मैं लड़ा बहुत इस दुनिया से
सह गया बहुत कडवे ठोकर
आ भी जाओ यूं न सताओ 
 बुलाता हूँ  मैं तुमको रो रो कर 
एक अनुरोध :-इस मंच पर आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया, बस जाने से पहले एक गुजारिश है साहब की- 'कुछ तो कहते जाइये जो याद आप हमको भी रहें, अच्छा नहीं तो बुरा सही पर कुछ तो लिखते जाइये

क्या सचमुच ऐसा ही है अगर है तो

नमस्कार दोस्तों ,
कल मैं न्यूज़ में देख रहा था की २१ मई २०११ को दुनिया ख़त्म होने वाली है ,क्या सचमुच ऐसा है. हालाँकि ये सब अंध विस्वास है की संसार  का विनाश हो जायगा 
लेकिन कभी कभी मैं सोचता हूँ की कभी न कभी कुछ न कुछ तो होगा ,क्योंकि मानव प्रजाति ने इतनी प्रगति कर ली है की वो विधाता को कुछ समझ ही नहीं रहा है 
सिर्फ पैसे के लिए ,इस पैसे ने मानव को इतना खुदगर्ज़ बना दिया है की बस पूछिए मत ........
पैसे की अंधी भूख ने मनुष्य ने समस्त जीव प्रजाति का लगभग विनाश कर डाला ,और कर रहा है ,जमीने खोखली कर दी है ,हवा को भी शुद्ध नहीं छोड़ा ,आदमी आदमी को गज़र मूली की तरह काट रहा है प्रक्रति से छेड़छाड़ कर रहा मनुष्य उस संसार रचने वाले को भूल बैठा है ,लेकिन ये उसकी भूल है, एक दिन उस पर ऐसा कहर टूटेगा की वो खुदपर न तो हंस पायगा न ही  रो पायगा,क्या सचमुच ऐसा ही है अगर है तो  .......................
देखते है २१ मई २०११ को क्या होता है .......
अगर जिंदगी रही तो फिर मिलेंगे  तब तक के लिए आप सब को हमारा हाथ जोड़ कर नमस्कार ,
नोट -:कृपया इसे किसी और तरह  से न ले I
इस मंच पर आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया, बस जाने से पहले एक गुजारिश है साहब की- 'कुछ तो कहते जाइये जो याद आप हमको भी रहें, अच्छा नहीं तो बुरा सही पर कुछ तो लिखते जाइये।

Thursday 28 April 2011

कहना मैंने याद किया है।


अगर छाँव में धूप मिले, तो कहना मैंने याद किया है।
वही कोकिली कूक मिले, तो कहना मैंने याद किया है॥
शब्द-शब्द मूरत गढ़ करके,
जिसके गीतों को सुन करके।
दिल में नई तरंगें उठती ,
ऐसी कोई पंक्ति मिले ,तो कहना मैंने याद किया है ॥
देहरी तक आ करके ठिठकी ,
क्यों करके आती है हिचकी ।
जिसने मुझको याद किया हो
ऐसा कोई मीत मिले, तो कहना मैंने याद किया है ॥
चांदी में घोला हो सोना,
कुछ चंचल हो कुछ अलसौना ।
लज्जा कुंदन भी फीका हो
नैना जैसे सीप मिले, तो कहना मैंने याद किया है ॥
जैसे-जैसे घूँघट सरके ,
त्यों -त्यों कितने दर्पण दरके ।
जिसकी पलकें ही घूँघट हों
ऐसा कोई रूप मिले,तो कहना मैंने याद किया है ॥

Tuesday 26 April 2011

Happy Mother,s Day

माँ तब तुम्हारी याद आई 
सुबह सवेरे आँख खुली 
और तेरी सूरत नज़र न आई 
माँ तब तुम्हारी याद आई 
सांझ ढले जब घर लोटा 
और तू घर पर नज़र न आई 
माँ तब तुम्हारी याद आई 
दुनिया भर की धुप लगी 
और तेरी आँचल छाव न पाई 
माँ तब तुम्हारी याद आई 
चौखट पर जब मेरे घर की 
तेज जब भी हवा आई 
माँ तब तुम्हारी याद आई 

Saturday 16 April 2011

मेरा कफ़न

जाने क्यों उदास और तनहा है मेरा कफ़न
शायद मेरे इंतज़ार में है मेरा कफ़न
तुजसे ज्यादा वफ़ा निभा रहा है मुझसे 
मेरे साथ चिता में जल रहा है मेरा कफ़न
खूब लग रहा है सफेदी में सुर्ख रंग 
देख तेरी हिना से जगमगा रहा है मेरा कफ़न
नज़र न लग जाये मेरी लाश को किसी बेवफा की 
तुझ से  मेरा चेहरा छुपा रहा है मेरा कफ़न 
हर निशानी मेरे वजूद की मेरे साथ जल जायगी आज
मेरा आखिरी निशान भी मिटा रहा है मेरा कफ़न
शायद कभी तुजसे मुलाकात हो की ना हो
तुजसे बहुत दूर मुझे ले जा रहा है मेरा कफ़न

क्या होता अगर हंसा देता कोई

दुआ नहीं तो गिला देता कोई ,मेरी मेहनत का सिला देता कोई
जब मुक्कदर ही नहीं था अपना , देता भी तो भला क्या देता कोई
तक़दीर नहीं थी अगर आसमान छूना ,खाक में ही मिला देता कोई
गुमान ही हो जाता किसी अपने का , दामन ही पकड़ कर हिला जाता कोई
अरसे से अटका है हिचकियो पे ,अच्छा होता जो भुला देता कोई
ये तो रो रो के कट गयी जिंदगी अपनी ,क्या होता अगर हंसा देता कोई  

वक्त के कारवां से आगे हूँ .

वक्त के कारवां से आगे हूँ .
बेरहम आसमा से आगे हूँ
हूँ कहाँ ये तो खुदा जाने .....
पर जहाँ कल था 
वहां से आज आगे हूँ  

Tuesday 12 April 2011

बस लिख रहे हैं प्यार तुम्हे

 बहुत दिन से कुछ लिख नहीं पाए....उसके लिए माफ़ी चाहते  है
एक शेर आपके  समक्ष.....
हैं दूर बहुत मजबूर बहुत
क्या भेंट करे उपहार तुम्हे
स्वीकार इसी को कर लेना
बस लिख रहे हैं प्यार तुम्हे

Friday 1 April 2011

हम भी हैं भाई ब्लोगर,

                                         हम तो कुछ थे नहीं , बस सब आप का ही साथ है

Tuesday 22 March 2011

यादें आती रही मगर बंद मैखाना हुआ

तुझसे मिले एक ज़माना हुआ 
मैखाने जाने का बहाना हुआ
जाम जब साकी ने पिलाया अपने हाथो से 
एक मुद्दत बाद मेरा होश में आना हुआ
शीशे में देखा एक अजनबी था सामने 
तेरे इश्क में कैसा मैं खुद से बेगाना हुआ
ज़िक्र फिर तेरा आया, जब चला दौर ए जाम 
लूटना फिर सुरु मेरे अश्कों का खज़ाना हुआ
सोचा तेरे याद को पि जाऊं जाम में घोल कर 
यादें आती रही मगर बंद मैखाना हुआ  

Saturday 19 March 2011

लिखना तो नहीं आता पर लिख कर देखा थोडा सा ....

लिखना तो नहीं आता पर लिख कर देखा थोडा सा.... 
जिंदगी ने जिन हालात में मुझे उस मोड़ पे छोड़ा था 
जहाँ मेरे बैशाखी ने भी मुझसे नाता तोडा था
ऐसे ही कई मोड़ पर मेरे सपनो ने मुझे छोड़ा था
लिखना तो नहीं आता पर लिख कर देखा थोडा सा ....
जिंदगी के फैसले में हमने ये न सोचा था
खुबसूरत ख्वाब ने हमे दिया किस तरह धोखा था
बहार से तो अति सुन्दर मगर अन्दर से वो खोखा था
लिखना तो नहीं आता पर लिख कर देखा थोडा सा ......
कर गया बर्बाद मुझको जो सपना मेने देखा था
ऐसा भी कभी होगा एक दिन न मैंने कभी ये सोचा था
की ऐसे ही एक दिन मैं हारकर भी जीता था
ये होली ही ऐसी आई है की मैं खुस हूँ बहुत 
वरना गम भुलाने को मैं हर होली को पीता था
लिखना तो नहीं आता पर लिख कर देखा थोडा सा .... 
 

अब तो बेमौत मरेंगे मेरे मरने वाले

आइना देख के बोले ये सवरने वाले 
अब तो बेमौत मरेंगे मेरे मरने वाले
न जाने महफ़िल में कितने ही आये मेरे मिलने वाले
कई उनमे दिलवाले थे तो कई थे उनमे मतवाले 
सामने बोले ये मेरे बोलने वाले
की अब तो बेमौत मरेंगे मेरे मरने वाले.....
ये तेरा ही था जादू या था कुदरत का करिश्मा 
जिसने भी तुझे देखा उन सबको पड़े जान के लाले 
उन सभी को देख बह निकले मेरे भी अश्को के नाले 
मेरे अश्को को देख सामने आ ही गए मेरे सामने वाले
और कहने लगे की अब तो बेमौत मरेंगे मेरे मरने वाले   
आइना देख के बोले ये सवरने वाले 
अब तो बेमौत मरेंगे मेरे मरने वाले

Thursday 17 March 2011

जब से तुम बिछुडे।

जब से तुम बिछुडे।
तेरे मेरे मिलने का वो साल पुराना बीत गया।
जबसे तुम बिछुडे हो प्रीतम, एक ज़माना बीत गया॥

एक नदी थी, एक था पीपल;
एक घना था, एक थी निर्मल।
लहरों से छैंया तक का वो दौड़ लगाना बीत गया॥
जब से तुम बिछुडे हो प्रीतम, एक ज़माना बीत गया...

एक थी बरखा, एक था बादल;
एक घना था, एक थी निर्मल।
सावन की छम छम बूंदों में धूम मचाना बीत गया॥
जब से तुम बिछुडे हो प्रीतम, एक ज़माना बीत गया...

एक हवा थी, एक था जंगल;
एक घना था, एक थी निर्मल।
पंख पसारे पत्तों के संग उड़ उड़ जाना बीत गया॥
जब से तुम बिछुडे हो प्रीतम, एक ज़माना बीत गया...

अपने दिल को पत्थर का बना कर रखना ,

अपने दिल को पत्थर का बना कर रखना ,
हर चोट के निशान को सजा कर रखना ।
उड़ना हवा में खुल कर लेकिन ,
अपने कदमों को ज़मी से मिला कर रखना ।
छाव में माना सुकून मिलता है बहुत ,
फिर भी धूप में खुद को जला कर रखना ।
उम्रभर साथ तो रिश्ते नहीं रहते हैं ,
यादों में हर किसी को जिन्दा रखना ।
वक्त के साथ चलते-चलते , खो ना जाना ,
खुद को दुनिया से छिपा कर रखना ।
रातभर जाग कर रोना चाहो जो कभी ,
अपने चेहरे को दोस्तों से छिपा कर रखना ।
तुफानो को कब तक रोक सकोगे तुम ,
कश्ती और मांझी का याद पता रखना ।
हर कहीं जिन्दगी एक सी ही होती हैं ,
अपने ज़ख्मों को अपनो को बता कर रखना ।
मन्दिरो में ही मिलते हो भगवान जरुरी नहीं ,
हर किसी से रिश्ता बना कर रखना ।
मरना जीना बस में कहाँ है अपने ,
हर पल में जिन्दगी का लुफ्त उठाये रखना ।
दर्द कभी आखरी नहीं होता ,
अपनी आँखों में अश्को को बचा कर रखना ।
सूरज तो रोज ही आता है मगर ,
अपने दिलो में ‘ दीप ‘ को जला कर रखना

Tuesday 15 March 2011

पंछी क्यों परदेसी हो गए अब अपने ही गाँव से,

पीपल बाबा नदी किनारे पूछे अपनी छाँव से
पंछी क्यों परदेसी हो गए अब अपने ही गाँव से,
पहेले तो मक्की की रोटी खाते थे बड़े चाव से
अब नहीं मिलती वो किसी तो भी भाव से
पंछी क्यों परदेसी हो गए अब अपने ही गाँव से,
कितने कोवे परेशान करते अपनी कांव कांव से,
अब नहीं आते वो किसी नीम की भी छाँव से,
पंछी क्यों परदेसी हो गए अब अपने ही गाँव से,
अब अपनी भी क्या कहें ...........भइया
हम सब भी तो आ गए अपने अपने गाँव से..
तभी तो माँ कहती है की .........
पंछी क्यों परदेसी हो गए अब अपने ही गाँव से,
....................................................................
पीपल बाबा नदी किनारे पूछे अपनी छाँव से
पंछी क्यों परदेसी हो गए अब अपने ही गाँव से,

कल तुम भी ज़रुर आना निलामी होगी मेरे ज़ज़बात की ।

कल तुम भी ज़रुर आना निलामी होगी मेरे ज़ज़बात की,
सरे बाज़ार किमत लगेगी मेरे हालात की,
बाँध खड़ा किया जाएगा मुझे चौराहे पर,
सबकी निगाहें होंगी मेरे निगाहों पर,
सावन में पूछ क्या हो आसुओ की बरसात की,
कल तुम भी ज़रुर आना निलामी होगी मेरे ज़ज़बात की ।
.
इन्सानो ने बनने दिया इन्सान तो क्या,
खुद अपने हीं घर में बन गए मेहमान तो क्या,
दिल में दर्द और होठों पर मुस्कान नहीं,
खुद पर शर्मींदा हूँ औरो से परेशान नहीं,
मुझे समझ हीं ना थी दुनिया के इस खुराफ़ात की,
कल तुम भी ज़रुर आना निलामी होगी मेरे ज़ज़बात की ।