इस डूबी हुई कश्ती को सहारा नहीं मिला
अपने तो बहुत मिले ,कोई हमारा नहीं मिला
याद आता है वो पल आज भी
डूबी थी कश्ती मेरी जिस दिन
थामा तो हाथ बहुतो ने था मेरा
मगर फिर भी किनारा नहीं मिला
इस डूबी हुई कश्ती को सहारा नहीं मिला
अपने तो बहुत मिले ,कोई हमारा नहीं मिला
माना उस तूफ़ान में लाखों बेघर हुए थे
फिर कुछ आये भी थे सांत्वना देने के लिए
जिंदगी तो मिल मुझे भी मिल जाती ........
मगर क्या करू साथ जब तुम्हारा नहीं मिला
इस डूबी हुई कश्ती को सहारा नहीं मिला
अपने तो बहुत मिले ,कोई हमारा नहीं मिला
तुम्हारी इस बेरुखी को मैं क्या नाम देता
अपने साये को क्यों मैं बदनाम कर देता
मुझे अफ़सोस है आज भी इस बात का
वो ख़त आपको हमारा नहीं मिला
इस डूबी हुई कश्ती को सहारा नहीं मिला
अपने तो बहुत मिले ,कोई हमारा नहीं मिला
बहुत सुन्दर प्रयास है आपका, धन्यवाद.
ReplyDeleteआपसे अनुरोध है कि पोस्ट पढ़ने के लिए मेल ना करें, हम आपको फालो कर रहे हैं हमें आपका पोस्ट फीड़/रीडर के द्वारा हमें मिल जायेगा और हम बिना टिप्पणी किए भी आपको पढ़ पायेंगें.
बहुत सुन्दर रचना...
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