मेरी ख्वाबो की दुनिया
अब सवरने लगी है |
थी जिसको नफरत मुझसे
वो भी मुझपर मरने लगी है
मेरी ख्वाबो की दुनिया
अब सवरने लगी है |
कसूर मेरा ही था की
वो मुझसे रूठे रहे उम्र भर
उनके रूठने से मिले जो ज़ख्म
उनको वो ही अब भरने लगी है
मेरी ख्वाबो की दुनिया
अब सवरने लगी है |
यूँ तो की कोशिश बहुत की
हमने उन्हें मानाने की .....
जिनको नफरत थी चेहरे से हमारे
देखकर वो भी हमको हंसने लगी है
मेरी ख्वाबो की दुनिया
अब सवरने लगी है |
उस भगवन के उपकार से
हूँ मैं आज उस मुकाम पर
की लोग सलाह लेते है मुझसे
दुनिया जिनकी बिखरने लगी है
मेरी ख्वाबो की दुनिया
अब सवरने लगी है |
शर्मा जी ! बहुत सुंदर लिखते हैं आप... अगर बुरा न माने तो एक सलाह देना चाहूँगा... "बस थोड़ी सी व्याकरण मे होने वाली गलतियाँ सुधार लें"
ReplyDeleteशायद जल्दबाज़ी मे आपने गलत लिख दिया होगा इसीलिए एक बार फिर पढ़िये अपनी इस गजल को...
एक लाइन बता देता हूँ
"यूँ तो की कोशिश बहुत की
हमने उन्हें मानाने की ....."
इस लाइन मे "यूं तो की कोशिश बहुत हमने उन्हे मनाने की... "
होना चाहिए था...
और भी ऐसी ही छोटी छोटी गलतियाँ हैं... कृप्य मेरी बात का बुरा न माने, और अपने लेखन मे सुधार करने की कोशिश करें। क्योंकि मेरे लिए वही ब्लॉगर बहुत अच्छा होता है जो अपनी गलतियों को जानने के लिए हमेशा तत्पर रहे और जान लेने के बाद उसे ठीक भी करे...
इस रचना के लिए आभार...
भावपूर्न सुन्दर रचना....
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