है तो सब कुछ मेरे पास, मगर
फिर भी न जाने कुछ कमी सी है
तुमने मुझको जीना सिखाया
गिरकर फिर संभलना सिखाया
और आज ,हाल ये है मेरा की
तेरे लौट आने के इंतजार में
सांसे मेरी अभी थमी सी है
आज आँखों में मेरी कुछ नमी सी है
है तो सब कुछ मेरे पास, मगर
फिर भी न जाने कुछ कमी सी है
बसे भी ना थे , की घर उजड़ गए
अभी संभले ही थे, की पैर उखड गए
एक उम्मीद की शमा बाकी है अभी
कहीं उजड़ ना जाये फिर से
ये मेरी दुनिया अभी बसी सी है
आज आँखों में मेरी कुछ नमी सी है
है तो सब कुछ मेरे पास, मगर
फिर भी न जाने कुछ कमी सी है
आज आँखों में मेरी कुछ नमी सी है
ReplyDeleteहै तो सब कुछ मेरे पास, मगर
फिर भी न जाने कुछ कमी सी है
bahut sundar prastuti.bahut bhavpoorn abhivyakti.
ReplyDelete.aapko ganesh utsav kee hardik shubhkamnayen.
फांसी और वैधानिक स्थिति
bahut sunder bhavmai,dil ke dard ko batati
ReplyDeleteshhandaar abhibyakti.bahut badhaai aapko.
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so sad..
ReplyDeletebt beautifully written !!
शायद ये आँखों की नमी ही जीने का सबब होती हैं ......
ReplyDeletebravo
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