देखा है मैंने ,
मिटते हुए अपनी हस्ती को
वो कुछ दरिन्दे थे , शायद
जिन्होंने मिटाया मेरी हस्ती को
नहीं मालुम मुझे क्या थी मेरी खता
इतनी बड़ी दी जो उन्होंने मुझको सजा
वो जो आशियाना था मेरा
कर दिया आग के हवाले
मेरे ही सामने जला दिया मेरी बस्ती को .
अब आपसे क्या कहूँ
देखा है मैंने ,
मिटते हुए अपनी हस्ती को ....
वो आशियाना सामने, मेरे जलकर राख हो गया
वो मंजिल ,वो सपने,सब खाख हो गया
लोग भी बहुत आये थे, मुझको सांत्वना देने
कुछ बनकर आये इन्सां,कुछ अपना उधार लेने
सब कुछ तो ठीक था , इस जिंदगी मैं मेरी
मगर एक ही सैलाब ने ..
हिलाकर रख दिया मेरी कश्ती को ....
और पल भर मैं ,मिटा कर रख दिया
मेरे ही सामने ......
मेरी ही हस्ती को
मगर एक ही सैलाब ने ..
ReplyDeleteहिलाकर रख दिया मेरी कश्ती को ....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...