Saturday, 27 August 2011

तेरे आने की इक बंधी हुई है आश, तेरे बिन मैं हूँ जाना ,बस इक जिंदा लाश

तेरे आने की इक बंधी हुई है आश 
तेरे बिन मैं हूँ जाना ,बस इक जिंदा लाश 
कब से राह तेरी  देख रहा हूँ ...
यादों में तुझे सोच रहा हूँ 
तेरे इक दीदार की खातिर रुकी हुई है साँस 

तेरे आने की इक बंधी हुई है आश 
तेरे बिन मैं हूँ जाना ,बस इक जिंदा लाश 

यूं तो मिले बहुत मुझे इस जिंदगी ए डगर में 
क्यों बस तुम ही बसे इस जिगर में 
तुम्हे भी नहीं होगा मालूम 
तुम हो कितने खाश 

तेरे आने की इक बंधी हुई है आश 
तेरे बिन मैं हूँ जाना ,बस इक जिंदा लाश 

मैंने शोहरत बहुत कमाया 
पर बात समझ बाद में आया 
आज हूँ मैं अपनी जिंदगी का शेन्शाह
पर कुछ भी नहीं है मेरे पास

तेरे आने की इक बंधी हुई है आश 
तेरे बिन मैं हूँ जाना ,बस इक जिंदा लाश 

9 comments:

  1. आपके पुराने ब्लॉग के बारे में जानकर दुख हुआ...चलिये, कोई बात नहीं. इसे आगे बढ़ायें और बैक अप बनाते रहिये. शुभकामनाएँ.

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  2. पुराने ब्लॉग का बहुत दुःख हुवा ... आशा है आप उसे पुन्ह प्रापर कर लेंगे ...
    किसी के प्यार में इस कदर डूब जाना ... कमाल की रचना है ...

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  3. तेरे आने की इक बंधी हुई है आश
    तेरे बिन मैं हूँ जाना ,बस इक जिंदा लाश
    waah bahut khub dost :)

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  4. बहुत सुन्दर लिखा है आपने ! गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ ज़बरदस्त प्रस्तुती!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  5. अच्छी प्रस्तुति ...

    वर्ड वेरिफिकेशन हटाएँ

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  6. वर्ड वेरिफिकेशन हटाएँ

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