पीपल बाबा नदी किनारे पूछे अपनी छाँव से
पंछी क्यों परदेसी हो गए अब अपने ही गाँव से,
पहेले तो मक्की की रोटी खाते थे बड़े चाव से
अब नहीं मिलती वो किसी तो भी भाव से
पंछी क्यों परदेसी हो गए अब अपने ही गाँव से,
कितने कोवे परेशान करते अपनी कांव कांव से,
अब नहीं आते वो किसी नीम की भी छाँव से,
पंछी क्यों परदेसी हो गए अब अपने ही गाँव से,
अब अपनी भी क्या कहें ...........भइया
हम सब भी तो आ गए अपने अपने गाँव से..
तभी तो माँ कहती है की .........
पंछी क्यों परदेसी हो गए अब अपने ही गाँव से,
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पीपल बाबा नदी किनारे पूछे अपनी छाँव से
पंछी क्यों परदेसी हो गए अब अपने ही गाँव से,
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