कभी नज़रें मिलाने में ज़माने बीत जाते हैं,
कभी नज़रें चुराने में ज़माने बीत जाते हैं,
किसी ने आँख भी खोली तो सोने की नगरी में,
किसी को घर बनाने में ज़माने बीत जाते हैं,
कभी काली स्याह रातें भी पल पल की लगती हैं,
कभी सूरज को आने में ज़माने बीत जाते हैं,
कभी खोला घर का दरवाजा तो मंजिल सामने थी,
कभी मंजिल को पाने में ज़माने बीत जाते हैं,
चंद लम्हों में टूट जाते हैं उम्र भर के वो बंधन,
वो बंधन जो बनाने में ज़माने बीत जाते हैं....!!!!
कभी नज़रें चुराने में ज़माने बीत जाते हैं,
किसी ने आँख भी खोली तो सोने की नगरी में,
किसी को घर बनाने में ज़माने बीत जाते हैं,
कभी काली स्याह रातें भी पल पल की लगती हैं,
कभी सूरज को आने में ज़माने बीत जाते हैं,
कभी खोला घर का दरवाजा तो मंजिल सामने थी,
कभी मंजिल को पाने में ज़माने बीत जाते हैं,
चंद लम्हों में टूट जाते हैं उम्र भर के वो बंधन,
वो बंधन जो बनाने में ज़माने बीत जाते हैं....!!!!
.बहुत सराहनीय प्रस्तुति.ब्लॉग जगत में ऐसी आती रहनी चाहिए.आभार हमें आप पर गर्व है कैप्टेन लक्ष्मी सहगल
ReplyDeletevery nice.....
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