सागरों में अब गहराइया नहीं रही !!
ये आँखें आज फिर रोने को है !
मन ये फिर आज सोने को है !!
जिंदगी की शाम होने को है !
वक़्त के फैसले, अब ये ही सही !!
हम तो डूबने चले थे .मगर ........!
सागरों में अब गहराइया नहीं रही !!
तुझसे उम्मीद थी मुझको बहुत !
मगर अब उम्मीद क्या रखूँ !!
निशाँ ही मिट गये मंजिल के !
मंजिल जो , आज तक मिली नहीं !!
हम तो डूबने चले थे .मगर ........!
सागरों में अब गहराइया नहीं रही !!
मालूम मुझको नहीं , मगर !
मिले थे तुम उस मोड़ पर !!
अनजान बना दिया मुझको !
मगर अजनबी तुम तो नहीं !!
हम तो डूबने चले थे .मगर ........
सागरों में अब गहराइया नहीं रही
ab kya kaha jaye sharma ji
ReplyDeleteपहले तो था मैं अंतहीन, अब अर्थहीन सा लगता हूँ !
प्रतिदिन सूरज मुझमें डूबे, आभाविहीन सा लगता हूँ !!