Monday, 2 January 2012

सागरों में अब गहराइया नहीं रही ....

हम तो डूबने चले थे .मगर ........!
सागरों में अब गहराइया नहीं रही !!  
 
ये आँखें आज फिर रोने को है !
मन ये फिर आज सोने को है !!
जिंदगी की शाम होने को है !
वक़्त के फैसले, अब ये ही सही !!
 
हम तो डूबने चले थे .मगर ........!
सागरों में अब गहराइया नहीं रही  !!
 
तुझसे उम्मीद थी मुझको बहुत !
मगर अब उम्मीद क्या रखूँ !!
निशाँ ही मिट गये मंजिल के !
मंजिल जो , आज तक मिली नहीं !!
 
हम तो डूबने चले थे .मगर ........!
सागरों में अब गहराइया नहीं रही !!
 
मालूम मुझको नहीं , मगर !
मिले थे तुम उस मोड़ पर !!
अनजान बना दिया मुझको !
मगर अजनबी तुम तो नहीं !!
 
हम तो डूबने चले थे .मगर ........
सागरों में अब गहराइया नहीं रही  

1 comment:

  1. ab kya kaha jaye sharma ji

    पहले तो था मैं अंतहीन, अब अर्थहीन सा लगता हूँ !
    प्रतिदिन सूरज मुझमें डूबे, आभाविहीन सा लगता हूँ !!

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