Friday, 22 November 2013

उस राह से अब कोई नही गुजरता....

उस राह से अब कोई नही गुजरता !
जहां देखा था तुमको पहली बार ,
और दिल में उतर गयी थी तस्वीर तुम्हारी ...
मैं रोज़ पहुँच जाता था, तुमसे पहले
दीदार करने तुम्हारा
और तुम मेरे सामने उतरती थी ..
हर रोज़ अपने पापा कि बाइक से
मैं यूँ ही देखा करता था
सड़क पार करते हुए
तुम्हारी सादगी को ...
मगर हिम्मत न हुई कभी तुमसे कहने कि
लबो को आदत सी हो गयी
खामोश रहने कि ..
मगर उस राह से अब कोई नही गुजरता !
फिर एक दिन अचानक,
तूफ़ान जो आया ...
मुझे फिकर थी, खुद से ज्यादा तुम्हारी
और वो जो उड़ गया था
हवा से दुप्पटा तुम्हारा
और हथेली से ढक ली मैंने अपनी आँखे
मगर अँगुलियों के बीच से जो देखा
तो देख रही थी तुम मुझको भी
कहना चाहती थी शायद , मेरी ही तरह
मगर ...
मगर उस राह से अब कोई नही गुजरता !
एक हलकी सी मुस्कान ...तुम्हारी
मेरे दिल कि धड़कन , सहेजे है आज भी
करती है इंतज़ार तुम्हारा ...
मगर तुम ना जाने .कहाँ हो
आज भी निरंतर इंतज़ार में हूँ तुम्हारे
उसी सड़क पर , देखता हूँ राह तुम्हारी
कि तुम आओगी ..
मगर उस राह से अब कोई नही गुजरता !



 पी के ''तनहा''
कवि @ मेरा हमसफ़र 

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