Tuesday 1 February 2011

निकल पडे हैं पांव अभागे ,जाने कौन डगर ठहरेंगे !

कुछ छोटे सपनो के बदले ,
बड़ी नींद का सौदा करने ,
निकल पडे हैं पांव अभागे ,जाने कौन डगर ठहरेंगे !
वही प्यास के अनगढ़ मोती ,
वही धूप की सुर्ख कहानी ,
वही आंख में घुटकर मरती ,
आंसू की खुद्दार जवानी ,
हार जीत तय करती है वे , आज कौन से घर ठहरेंगे .
निकल पडे हैं पांव अभागे ,जाने कौन डगर ठहरेंगे !

कुछ पलकों में बंद चांदनी ,
कुछ होठों में कैद तराने ,
मंजिल के गुमनाम भरोसे ,
सपनो के लाचार बहाने ,
उन के भी दुर्दम्य इरादे , वीणा के स्वर पर ठहरेंगे .
निकल पडे हैं पांव अभागे ,जाने कौन डगर ठहरेंगे

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