Tuesday 1 February 2011

ख़त्म पर फिर तो जिंदगानी है

जिसकी आँखों में सिर्फ पानी है
वो ग़ज़ल आपको सुनानी है

अश्क कैसे गिरा दूँ पलकों से
मेरे महबूब की निशानी है
 
लब पे वो बात ला नहीं पाए
जो कि हर हाल में बतानी है

 कहीं आंसू कहीं तबस्सुम है
कुछ हकीकत है कुछ कहानी है

हमने लिखा नहीं किताबों में
अपना जो भी है मुंह ज़बानी है

कर दी आसान मुश्किलें सारी
मौत भी किस क़दर सुहानी है

आज तो बोल दे 'PK' सब कुछ
ख़त्म पर फिर तो जिंदगानी है

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