इक खाब सुहाना टूट गया, एक ज़ख्म अभी तक बाकी है,
जो अरमा थे सब ख़ाक हुए, बस राख अभी तक बाकी है,
जब उड़ते थे परवाज़ थी, सूरज को छूने निकले थे,
सब पंख हमारे झुलस गए, पर चाह अभी तक बाकी है,
पर्वत से अक्खड़ रहते थे, तूफानों से भीड़ जाते थे,
तिनको के जैसी बिखर गए, पर ताव अभी तक बाकी है,
लहरों से बहते थे हरदम, दीवाने थे मतवाले थे,
दिन गुज़र गए वो मस्ताने, पर याद अभी तक बाकी है...!!!
जो अरमा थे सब ख़ाक हुए, बस राख अभी तक बाकी है,
जब उड़ते थे परवाज़ थी, सूरज को छूने निकले थे,
सब पंख हमारे झुलस गए, पर चाह अभी तक बाकी है,
पर्वत से अक्खड़ रहते थे, तूफानों से भीड़ जाते थे,
तिनको के जैसी बिखर गए, पर ताव अभी तक बाकी है,
लहरों से बहते थे हरदम, दीवाने थे मतवाले थे,
दिन गुज़र गए वो मस्ताने, पर याद अभी तक बाकी है...!!!
No comments:
Post a Comment