Friday 28 January 2011

मंज़िल का कोई नाम ना मिले,

जब यूं ही कभी बैठे बैठे,
कुछ याद अचानक आ जाये,
हर बात से दिल बेज़ार सा हो,
हर चीज़ से दिल घबरा जाये,
करना भी मुझे कुछ और ही हो,
कुछ और ही मुझसे हो जाये,
कुछ और ही सोचूं दिल में मैं,
कुछ और ही होंठों पे आ जाये,

जब चांदनी दिल के आंगन में,
कुछ कहने मुझ से आ जाये,
इक ख्वाब ज़हन से छूटे कोई,
अहसास पे मेरे छा जाये,
जब ज़ुल्फ परेशां चेहरे पे,
कुछ और परेशां हो जाये,
कुछ दर्द भी दिल में होने लगे,
और सांस भी बोझल हो जाये,

जब शाम ढ़ले चलते चलते,
मंज़िल का कोई नाम ना मिले,
हंसता हुआ इक आगाज़ मिले,
रोता हुआ इक अंज़ाम मिले,
इस दिल को कोई पैगाम मिले,
और सारी वफाओं के बदले,
मुझ को ही कोई इल्ज़ाम मिले,

ऐसे ही किसी एक लम्हे में,
चुपके से कभी खामोशी में,
कुछ फूल अचानक खिल जायें,
कुछ बीते लम्हे याद आ जायें,
उस वक़्त तेरी याद आती है,
शिद्दत से तेरी याद आती है...!!!

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