Sunday, 9 January 2011

मिलते थे जिनसे रोज वो जाने किधर गए। तेरे शहर में तुझे ढूढते जमाने गुजर गए।।

मिलते थे जिनसे रोज वो जाने किधर गए।
तेरे शहर में तुझे ढूढते जमाने गुजर गए।।

टुकडों टुकडों की नींद से बटोरे थे कुछ सपने।
ऐसी हवा चली कि वो सारे बिखर गए।।

वक्त ने क्या सितम किया कैसे बताएं हम।
वो हर शहर उजड गया हम जिधर गए।।

न जाने क्या कशिश थी उसकी निगाह में।
जिन पर पडी नजर वो कातिल सुधर गए।।

मिलते थे जिनसे रोज वो जाने किधर गए।
तेरे शहर में तुझे ढूढते जमाने गुजर गए।।

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